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________________ ४३ प्रकरण ५ मुं ते पछी कामनी वेदनाथी पीडित छे चित्त जेनुं एवो ते बहुधान्यक शेठ पण उत्साहपूर्वकं हर्षित थईने जलदाथी कुरंगीने घेर गयो ॥ १ ॥ वरसाद वगरनुं आकाश अथवा नगरनिवासिओ वगरना श्रेष्ट नगरनी माफक पोताना घरने धनधान्यादिकथी खाली जोईने पण ॥ २ ॥ ते मूढे कुरंगीना मुखना अवलोकनने माटे आकुलचित्त थईने पोताना घरने चक्रवर्तिना घरथी पण अधिक मान्युं ॥ ३ ॥ तथा ते एम मानतो हतो के जे काम मारी प्रियाकरे ते मने प्रिय छे अने जेएन करे ते सघळं पण मने प्रिय छे ॥ ४ ॥ रागी माणस बीजाने न जुए तो तेमां कंई पण आश्चर्य नथी, केमके - जेनी आंख रागथी अंध थयली छे ते पोताना आत्माने पण देखतो नथी ॥ ९ ॥ तथा जे रक्त नर होय छे तेओ धर्म शुं छे, आपणुं कर्तव्य शुं छे, गुण शुं छे, सुख शुं छे, त्यागवा योग्य वस्तु कई छे, ग्रहण करवा योग्य वस्तु कई छे, यश शुं पदार्थ छे, द्रव्य शुं छे, अने घरनो नाश शुं चीज छे, वगेरे कंईपण जाणता नथी ॥ ६ ॥ रागी पुरुष स्वाधीनताने छोडी दे छे अने पराधिनतानो स्विकार करे छे तेमज धर्म कार्यने छोडीने पाप कार्यमां रमवा लागी जाय छे ॥ ७॥ रागी पुरुष जलदीथी मोटी आपदा भोगवे छे. शुं मांस लागली फांसीमां आसक्त थईने फसेलुं माछलुं मृत्यु पामतुं नथी ? ॥ ८ ॥ योग्य अयोग्य न जाणवावाळा हरणने ने प्रमाणे शिकारी मारी
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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