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________________ आपशे तेटली किंमतमा हुं लई लईश, केमके सारा माणसोनी साथे वस्तु नी प्राप्तिमां कोई प्रकारनी गणत्री कराती नथी ॥ ६४ ॥ आ प्रमाणे नगरना लोकोनी वातो सांभळता सांभळता सुंदर शरीरना धारक ए बन्ने मित्रो सोनानुं छे सिंहासन जेमां एवी वादशालामां पहोंच्या ॥ ६५ ॥ अने घास लाकडानां भाराने नांखीने मोटा जोरथी वादनो घंट वगाडीने सिंहनी माफक निर्भय थईने सोनाना सिंहासन' उपर जईने बेठा ॥ ६६ ॥ ते घंटनो शब्द सांभळीने पटना नगरना सघळा ब्राह्मणोने चिंता प्राप्त थई, अने 'कोइ जग्याएथी कोइ वादी आव्यो छे' ए प्रमाणे कहेता, वादनी लालसा राखवावाला निरंतर विद्यानी गर्वरुपी आग्निमां बळता परवादीने जीतवानी इच्छा करीने सघळा ब्राह्मणो। तरतज पोतपोताना घरनी बहार नीकळी पडया ॥ ६७-६८ ॥ कोइ तो कहता हता के तर्कशास्त्रना वादमां तो आजसुधी कोई पण विद्वान हमने जीतीने गयो नथी ॥ ६९ ॥ कोई कोई विद्वानो बीजा विद्वानोने कहता हता के तमे तो अनेक काठन वादो जीत्या छे माटे तमे तो मूंगा बेसजो, हवे हमे एनी साथे वाद करीशुं ॥७० ॥ केटलाक ब्राह्मणो विद्याना मदमां उमन्त थइने कहवा लाग्या के अवादिओमां रहेवाथी हमारो तो भणवानो वखत अने महेनत फोकट चाल्या गया ॥७१॥ कोई कहेता हता के आ वादरुपी वृक्षने परवादीने जीतवारुपी दंडथी तोडीने यशरुपी फळ ग्रहण करीशुं ॥७॥ वगेरे वातो करता करता वादनी खणखोस सहित ते ब्राह्मण विद्वानो ब्रह्मशालामां पहोंच्या ॥ ७३ ॥ अने हार, कंकण, कडां, श्रीवत्स अने मुकुट वगेरेथी अलंकृत मनोवेगने जोईने सघळा ब्राह्मणो आश्चर्य थई गया ॥७४॥ खरेखर आ विष्णु भगवानज बाह्मणोने जोवानी इच्छाथी आव्या छे,
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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