SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८ बहु आश्चर्य थया, केमके पृथ्विमां एवो कोण छे के जे अपूर्व वस्तुने जोवाथी मोहित न था ? ॥ ५४ ॥ जे प्रमाणे गोळना माटलांने गुंजार करती माखीओ वींटलाई जाय छे, ते प्रमाणे ते बन्नेनी चारे तरफ जोवावाळा लोको वीटलाई वळया ॥ ५५ ॥ तेमां कोई तो कहेवा लाग्या के ओहो ! बहु आश्चर्य छे. जुओ, आ भारी वस्त्रो पहेरीने सुंदराकार आ बन्ने जणा घास अने लाकडांनां भारो केम उठावे छे ! ॥ ५६ ॥ कोई कोई तो कहे छे के आ बन्ने पोतानां मोघां वस्त्रो वेचीने सुखथी पोताने घेर केम नथी रहता ! घास लाकडां केम वेचे छे? ॥ ५७|| बीजा केटलाक मनुष्यो आ प्रमाणे कहेता हता के ओहो! ए घास लाकडां बेचवावाला नथी; ए देव अथवा विद्याधर छे. कोई कारणथी आ प्रमाणे प्रकट थईने फरे छे || १८ || केटलाक भला माणसो कहवा लाग्या के आपणे पारकी वातनुं शुं काम छे ? केमके जे लोको पारकी चिन्तामा लागे छे तेने पाप बन्ध सिवाय कांइ पण फळ मळतुं नथी || १९|| प्रफुल्लित छे कांति जेनी एवाए बन्ने मित्रोने जोड्ने नगरनी केटलीक स्त्रीओ कामदेवने वशीभूत थई पोताना कार्यने छोडी ने चिंताने प्राप्त थई गई ॥ ६० ॥ केटलीक स्त्रीओ तो कहेती हती के, जगतमां कामदेव एक छे एवं प्रसिद्ध छे, परंतु ते प्रसिद्धीने प्रत्यक्ष असत्य करवाने माटेज जाणे कामदेवे बे देह धारण कर्या छे, ॥ ६१ ॥ कोई स्त्री कहे छे के आवी असाधारण शोभाने धारणकरवावाला महा रूपवान पुरुषने घास लाकडां बेचता में तो कदी जोया नथी ॥ ६२ ॥ कामथी पीडित एवी बीजी स्त्रीओ तेनी साथे वचनालाप करवाने माटे पोतानी सखीने कहेवा लागी के, हे सखी! ए घास लाकडां बेचवावाळा ने जलदीथी अहींआ तेडी लाव || ६३ || ए जेटली किंमतमां घास लाकडां
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy