________________
हवे एक दिवस मनोवेग कृत्रिम अकृत्रिम बे भेदरूप सघळा चैत्यालयोनां दर्शन करीने पोताने घेर पाछो आवतो हतो, एवामां मार्गमां एक जगाए एनुं विमान अटकी गयुं ॥ ५५ ॥ पोतानुं विमान अटकी जवाथी घभराई गयुं छे चित्त जेनुं एवो मनोवेग विचार करवा लाग्यो के आ विमान कोई शत्रुए अटकान्युं, अथवा कोई ऋद्धिधारी मुनिना प्रभावथी अटक्युं छे ? ॥ ५६ ॥ विमान अटकवानुं कारण जाणवाने माटे मनोवेगे नीचे पृथ्वी तरफ जोयुं, तो तेणे अनेक शहेर अने गामोथी अत्यंत रमणीय मालव देशने जोयो ॥ ५७ ॥ ते मालव देशना मध्य भागमां जगत् प्रसिद्ध मोटा विस्तारवाली पृथ्वीनी उत्तम ऋद्ध अने शोभाने जोवाने माटे जाणे स्वर्गपुरीज आवी होय, एवी उज्जयिनी नामनी नगरी जोई ॥ ५८ ॥ ए नगरीनो कोट चंद्रमाना किरण जेवो उज्ज्वल अने बहु उंचो शोभायमान छे, ते जाणे उज्जवल रत्नथी विभूषित मस्तकथी पृथ्वीने भेदीने स्वर्गने जोवाने माटे शेषनागज प्रवर्तेलो छे ॥ ५९ ॥ ए नगरीनी चारे तरफ वेश्यानी मनोवृत्तिनी माफक उप्तन्न थयां छे मोटा मोटा जलजंतु जेमां तेनाथी व अने कष्टरूप छे प्रवेश जेनो तथा अतल स्पर्श छे मध्यभाग जेनो एवी शोभायमान खाई छे. भावार्थ:- ते खाई वेश्याना मनोभावने दुर करवावाली छे ॥ ६० ॥ ए नगरीमां एवा मकानो छे के जेनी टोच आकाशनी साथै स्पर्श करे छे, अने ज्यां मृदंगादी अनेक प्रकारना वाजांना शब्द थई रह्या छे. जाणे ए राजभवन पोताना पर फेवता ध्वजारूपी हाथ वडे कलिना प्रवेशने निवारणज करी रह्या छे ॥ ६१ ॥ ए नगरीमां स्त्रीओ घणी चतुर, रमणीय रुपवती शोभायमान भमरारुपी धनुषवडे नेत्रोना कटाक्षरुपी बाणो चलावीने तरुण माणसाना समुहने पीडा करती