SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८४ कहीने संबोधन कर्या करे छे ॥ १४ ॥ एत्रणे काळोमां रहेवावाळा मनुष दहसहित धर्मनी माफक निर्मल आकारना धारक मद्यजाति १, तूर्यजाति २, गृहजाति ३, ज्योतिरांगजाति ४, भूषणांगजाति ५, भोजनजाति ३, मालाजाति ७, दोपकजाति ८, वस्त्रजाति ९, अने पात्रजाति १०, आ दश कल्प वृक्षोद्वारा मळेला नाना प्रकारना भोग ( सुख ) भोगवे छे. ए कारणथी ए त्रणे कालनी भूमीने भोगभूमि कही छे ।। १५-१६ ॥ ज्यारे त्रीजा काळ्ना अंतमा एक पल्यनो आठमो भाग बाकी रही जाय छे त्यारे ते काळमां १४ कुलकर एटले ते भोग भूमिओमां राजा समान मुखिओ उत्पन्न थाय छे. तेओ ते समयथी काळजें पलटएटले कर्म भूमिने थवानी व्यवस्था समजावता रहे छे, कल्पवृक्षनो एक पछी एक नाश थई जवा पछी सूर्य चंद्रमा देखाय छे. त्यारे प्रजाने क्षुधादिक वेदनाथी पीडित थवाथी दुधफलादिकनुं भक्षण करवू वगेरे सधळा प्रकारना उपायो बतावीने सघळी प्रजाना भय अथवा दुःखनो नाश करता रहे छे, ते कारणथी एने १४ कुलकर अथवा १४ मनु पण कहे छे. आ वर्तमान अवसर्पिणी कालना बीजा समयना अंतमा पहेला प्रतिश्रुति, बीजा सन्मति, जीजा क्षेमंकर, चोथा क्षेमंधर, पांचमा सीमंकर, छठा सीमंधर, सातमा विमलबाह, आठमा चक्षुष्मान् , नवमा यशस्वी, दशमा अभिचन्द्र, अग्यारमा चद्राभ, बारमा मरुदेव, तेरमा प्रसेनजित, अने छेल्ला नाभिराजा आ प्रमाणे १४ कुलकर उत्पन्न थया ॥१७-१८-१९-२०॥ ए सघळा १४ कुलकर जातिस्मरण (पोताना पूर्व जन्मना जाणकार ) अने दिव्यज्ञानवाला थाय छे, तेओ सघळी प्रजाने कर्मभूमिनी व्यवस्था बतावे छे ॥ २१ ॥ पूर्व दिशाथी सूर्यनी माफक नाभिराजा अने महादेवी
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy