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________________ स्था कहुं छु ॥ ६ ॥ आ भवसपिणी काळमा पहेलो सुखमासुखमा काम चार कोहा कोडी सागरनो थयो अने बाजो सुखमाकाळ त्रण कोडाकोडी सागरनो थयो ॥ ७ ॥ त्रीजो सुखमा दुःखमा काळ बे कोडा कोडी सागरनो थयो एमांथी पहेला काळमां मनुष्योनी आयु त्रण पल्यनी, बीजा मां बे अने त्रीजामां एक पल्यनी होय छे ॥ ८ ॥ आयुनी माफक तेना शरीरनी उंचाई पण पहेलामा त्रण कोश, बीजामां बे कोश, अने जीनामां एक कोशनी होय छे, अने पहेलामा त्रण दिवसे बीजामां बे दिवसे अने त्रीजामां एक दिवसे आहार ले छे ॥ ९ ॥ आहारनुं प्रमाण पहेला कालमां बोरसमान बीजामां आमळा समान अने त्रीजामां बहेडानी बराबर सर्वेन्द्रिओ ने बळकारी बीजाने दुर्लभ वीर्यवर्द्धक कल्पवृक्षोए आपेलं होय छे ॥१०॥ ए त्रणे काळमां उत्पन्न थवावाळा मनुष्योमा स्वामीसेवकादिकनो अथवा पारकाने घेर जवा आववानो संबंध होतो नथी, तेओ एक बीजाथी हित अधिक होता नथी तथा तेमने व्रत अथवा संयम कंईपण होतुं नथी ॥११॥ एत्रणे काळमां एक साथे चंद्रमा अने चांदनीनी माफक स्वाभाविक कांति अने उद्योतथी सर्वांग सुंदर स्त्रीपुरुषोनुं जोड़ेंज (युगल) उप्तन्न थाय छ, अनेते नोडु ४९ दिवसमा सवळा भोग भोगवीने समर्थ नवयौवन भाषत थई जाय छे, नवं नोडुं उत्पन्न थतांज पहेलं जोडुं एटले ते बन्नेनां मातापिता मरी जाय छे अने नवा जोडा साथे पोतानुं अस्तित्व छोडी जाय छे, तेथीन ए त्रणे काळमां उत्तरकुरु, वगेरे भोगभूमिनी माफक सघळां मनुष्य गणत्रीमां बराबरज उत्पन्न थाय छे ॥ १२-१३ ॥ ते जोडांमांथी प्यारी प्रियभाषिणी स्त्री तो पोतानां पतिने ' हे आर्य' कहीने संबोधन करे छे भने विचित्र प्रकारनी खुशामद करवावाळो पुरुष ' हे आर्य ' आ प्रमाणे
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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