________________
१३७
अने गुरु साथे गुरुनी परिक्षा करवी जोईए ॥ १०१ ॥ देव तो तेज छे के-जे सघळां कर्म रहित, सर्वज्ञ अने इन्द्र धरणींद्र नरेन्द्रोथी पूजित होय. धर्म तेज छे के जे-रागादि दोषोनो नाश करवामां कुशल अथवा दयाप्रधान होय. शास्त्र तेज सारं छे के जे-हेय उपादेय अने युक्तिपूर्वक वस्तुनुं सत्यार्थ स्वरुप प्रगट करवामां निपुण होय अने यति कहेतां गुरु तेज छे के जे-अपरिमाण ज्ञानना धारक परिग्रह रहित होईने निर्दोष होय ॥ १०२ ॥ ____ इति श्री अमितगति आचार्यकृत 'धर्म परिक्षा । संस्कृत ग्रंथनी गुजराती भाषाटीकामां तेरमुं प्रकरण पूर्ण थयुं ॥ १३ ॥