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________________ १३६ भागवता नरकादिक चारे गतिओमां परिभ्रमण करे छे ॥ ९३ ॥ ए ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन्द्र पोतानुं दुःख पण नष्ट करवामां समर्थ छे, ए. वातने बुद्धिमान केवी रीते विश्वास करी शके ? केमके- ॥ ९४ ॥ जे आळसु पोतानाज बळता घरने होलवतो नथी, ते बीजाना घरने होलवशे पवी वातने शुभमति पुरुष कोई प्रकारे पण पोताना हृदयमां श्रद्धान करी शकता नथी ॥९५ ॥ जे देव राग, द्वेष, भय, मोहादिकथी मोहित थईने पोताना सुखदायक पदार्थोंने जाणता नथी एवा नष्टबुद्धि बीजाने हमेशना सुखना कारणभूत मोक्षमार्गनो उपदेश केवीरीते करशे? ॥ ९६ ॥ आश्चर्य छे के आ लोकनी स्थिति तो जुदाज प्रकारे छे अने कामभोगना वशीभूत नष्टबुद्धि खळ पुरुषाएं जुदान प्रकारे कही दीधुं छे तेओए दुःखदायक नरक वासने जोयुं नथी. जो जोते अथवा जाणते तो नरक लईजाय एवां महापापरुष असत्य वचन कदी कहेते नहि ॥ ९७ ॥ भव समुहमां अटकवा वाळा कुमार्गीओवडे सत्यार्थ मोक्षमार्ग आच्छादन करवामां आवे छे, तेने जे कोई नष्टबुध्धि विचारता नथी, ते मोक्षरूपी मंदरियां केवीरीते जशे ॥ ९८ ॥ जे निमर्ल बुद्धिना धारक छे, तेओ छेदीने, तपावीने, घसीने अने कूटीने सोनानी परिक्षा कर्या करे छे, तेज प्रमाणे शील,संयम, तप, दया आदिक गुणोथी अमूल्य धर्मरुपी रानी पण परि क्षा करीने ग्रहण करे छे ॥ ९९ ॥ जे पुरुष देव, धर्म, गुरु अने शास्त्रनी परिक्षा करीने निर्दोष देव शास्त्र गुरु वगेरेनी उपासना करे छे, तेओ कर्मरुपी मोटी बेडीने कापीने अविनाशी पवित्र मोक्षपदने प्राप्त थायछे।१००॥ जे पूजनीय ज्ञानी पुरुष पोताना हितनी वांछा करे छे, तेओए पोताना घमंडने छोडीने देवथी देवनी, शास्त्रथी शास्त्रनी, धर्मथी धर्मनी,
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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