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________________ ने राखq ते भयने प्रगट करे छे ॥ ७४ ॥ जे ब्रह्मा, विष्णु, महादेवादी ए दोषोवडे पीडीत थाय छे, तेओ बीजाने केवी रीते दुःखथी छोडावी शके छ?; केमके-हाथीने मारवावाळा सिंहने हरण मारवं कई हिसाबमां नथी, परंतु जे हरणनेज मारवामां असमर्थ छे, ते हाथीनो क्षय केवीरीते करी शके ॥७॥ ने प्रमाणे रुपी पुद्गलनां स्पर्श रस गंधादिक गुण नियमथी होय छे, तेज प्रमाणे रागी पुरुषमा क्षुधादिक अष्टादश दोष पण अवश्य होय छे ॥७६ ॥ए सिवाय तमारा पुराणोमां ब्रह्मा विष्णु महेशने एकमूर्ती कह्या छे. जो एम छे तो ए वणे परस्पर मस्तक छेदनादि क्रिया केम करे छे? ॥ ७७ ॥ तथा अंधकारना समूहने सूर्यनी माफक जे देवे उपर प्रमाणे अराढदोषोनो नाश कीधो छे, तेज सघला देवोना अधिपति संसारी जीवोना पापने नष्ट करवामां समर्थ छे ॥ ७८ ॥ तथा बीजुं पण सांभळो. तमारा पुराणोमां कां छे के ब्रह्माजीए पाणांनी अंदर पोतानुं वीर्यक्षेपण कर्यु, तेनाथी एक बुदबुदा ( परपोटो ) उठीने तेमांथी एक जगदंड ( भगतने पेदा करवावाळु एक इंडु) पेदा थयुं ॥७९॥ते इंडाना बे भाग करवाथी त्रण लोकनी (सृष्टीनी) उत्पत्ति थई गई, माटे जो एवं शास्त्राम' कर्तुं छे तो एम बतावो के सृष्टि होवा पहला पाणी कोना उपर हतुं ॥८॥नदी, पर्वत, पृथ्वी, वृक्षादिकोनी उत्पत्तिना उपादान कारणोना अभावस्वरुप आकाशमां पृथ्वी, नदी पर्वतादिक पदार्थोनी उत्पतिकारक सामग्री क्यां आगळ मळी ? ।। ८१ ॥ केमके जे आकाशमां ( सृष्टिना पहेलां ) एक शरिरने उप्तन्न करवानी सामग्रीनू मळवू पण दुर्लभ छे, तेमां त्रण लोकना कारणभूत मूर्तिक पुद्गल द्रव्यनी प्राप्ति केवी रीते थई शके ? ॥ ८२ ॥ शरीर रहित ब्रह्माए
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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