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६२॥ नरकथी पण वधारे छे असाताकर्मनो उदय जेमां एवा क्रमकुल सहित गर्भमां प्राणीजन वारंवार जन्म लईने दुःख भोगवे छे ॥ ६३ ॥ घडपणमां पातानुं शरिरज वशमा रहेतुं नथी, तो बीजा कुटुंबीजन तो ते चेतना रहित बुढाना वशमां केम रहेशे ? ॥ ६४ ॥ जेनुं नाम सांभळतांज मनमां कंपारी छूटे छे, एवं मृत्यु साक्षात् आववाथी कोने भय अथवा दुःख थतुं नथी? ॥ ६५ ॥ उपसर्ग, महारोग, पुत्र, मित्र अने धननो क्षय थवाथी अल्पज्ञ जीवोनेज प्राणहारी दुःख थाय छे ॥ ६६ ॥ पोतानी पासे होवी असंभव छे एवी पारकानी संपत्तिने जोवाथी ज्ञानशून्य पुरुषोने दुःखदायक आश्चर्य थाय छे ॥ ६७ ॥ सघळी अशुचिओनुं घर, त्याग करवा योग्य ग्लानिकारक कुत्सित शरीरमां कूतरानी माफक नीच पुरुषज रत (लवलीन)थायछे ॥६८ ॥ व्यापार करवाथी देहने नष्ट करवावाळो अथवा विकल्प करवावाळो खेद (कष्ट)बल रहित जीवोने थाय छे ॥६९॥जे प्रमाणे अग्निथी घीनो बडो पीगळी जाय छे, तेज प्रमाणे व्यापार संबंधी असह्य परिश्रमथी जलदीथी मनुष्यनुं शरीर खेदमयी थई जाय छे ॥ ७० ॥ जे पुरुष निद्राने वशीभूत होय छे ते मदीराथी उन्मत्तनी माफक सघळा व्यापार रहित थई पोताना हित आहितने जाणता नथी ॥ ७१ ॥ ___आ प्रमाणे अराढ दोष महा दुःखD कारण छे. महादेव तो कपालरोगथी दुःखी छे, विष्णुने शिरोरोगी, सूर्यने कुष्टी (कोढी) अने अग्निदेवने पाण्डू रोगी कह्या छे ॥ ७२ ॥ तथा विष्णु निद्राथी व्याप्त छे. अग्नि क्षुधाथी, शंकर रतिथी अने ब्रह्मा रोगथी व्याप्त छ । ७३ ॥ स्त्रीहोवू ते रागने प्रकट करे छे, वैरीने मार द्वेषने प्रगट करे छे. पोताना विघ्नने न जाणवू अज्ञानपणुं सूचवे छे अने हीआर