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अंधकार अने अचल पर्वर्तमां चलपणुं थई जाय परंतु तारा वचननी सत्यता तो कदापि धई शकती नथी ॥ ९५ ॥ आ सांभळीने मनोवेग कह्यु के हे ब्राह्मणो! मोटें आश्चर्य छे के आवा असत्यभाषी फक्त हमज छीए? तमारा मतमां एवां एवां अनिवार्य असत्य वचन नथी? ॥ ९६ ॥ आ लोकमां घणुंखरूं सघळा माणसो पारकानोज दोष जुए छे अथवा पोताना असत्त्य मतनुज पोषण करवावाळा देखाय छे, परंतु पारकाज गुणोनी शुद्धि अने अमित ज्ञानना धारक पुरुषोना विचारनो विस्तार करवावाळा पक्षपात राहत कोई विरलाज होय छे ॥९७ ॥
इति श्री अमितगति आचार्यकृत धर्म परिक्षा संस्कृत ग्रंथनी गुजराती भाषाटिकामां बारमुं प्रकरण पूर्ण थयुं ॥ १२ ॥