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________________ हतो, केमके कामी पुरुष अवनारी, विपत्तिने देखतो नयी ॥९॥ ज्यारे हुं सीधुं म्हों राखीने सूइ गयो, त्यारे एक दुष्ट उंदर ते दिवामाथी दिवेट काढीने लइ जवा लाग्यो, तेथी मारी डाबी आंख उपर ते बळती दिवेट पड़ी गई ॥ १० ॥ त्यारे में तरतज जागीने आंख बळती होवाथी व्याकुल थइने एवो विचार कर्यो के ॥ ११ ॥ जो हुं डाबो हाथ काढीने बत्ती होलकुंछु तो माथानी नीचेथी हाथ निकली जवाथी मारी डाबा हाथवाळी स्त्री गुस्से थइ जशे, अथवा जमणे हाथे होलकुंछु तो आ बीजी क्रोध करशे ॥ १२ ॥ लाचार ! हुं मारी प्यारी स्त्रीओना भयथी तेना माथा नोचेथी हाथ न काढीने तेज माफक चूपचाप सूइ रह्यो, मेथी मारी डाबी आंख फूटी जवाथी हुं ते दिवसथी काणो थइ गयो ॥ १३ ॥ मारी आंखने बाळीने फोडया पछी ते दिवेट पोतानी मेळे होलवाइ गइ, परंतु में स्त्रिओना भयथी तेने होलववानो कोइ पण उपाय को नहि ॥ १४ ॥ मारा समान मूर्ख होय तो कहो के, जे स्त्रीमां आशक्त थइने पोतानी आंखने बळती जोइने पण चूप रहे ॥ १५ ॥ स्त्रीना भयथी जे दिवसे मारी आंख फूटी गइ ते दिवसथी मारुं विषमैक्षण एवं नाम पड़ी गयुं छे ॥ १६ ॥ आ लोक अथवा परलोकमां एवं कोइ पण असह्य दुःख नथी के जे स्त्रीना वशीभूत पुरुषने न थाय ॥१७॥ स्त्रीनो वश थयलो जे पुरुष आंख बळती छतां पण मूंगो थइने रहे छे, ते रांक मूर्ख एवं कयुं अयोग्य कार्य छ, के जे न करे? ॥ १८ ॥ मनोवेगे कयुं के हे ब्राह्मणो ! आ वादशालामां ते विषमैक्षणना मेवो कोई पुरुष होय तो हुं पूछवा छतां पण कहेवाने डरूंछु ॥ १९ ॥ ज्यारे ते मूर्ख आ प्रमाणे पोतानी मूर्खता कहीने एक बाजुए बेसीगयो
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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