________________
इस प्रकार ये पाँच समितियाँ कुशल.(मार्ग) में प्रवृत्ति रूप है तथा तीन गुप्तियाँ कुशल में प्रवृत्ति तथा अकुशल से निवृत्ति रूप है।
परीषह-विवेचन
गाथा खुहा पिवासा सी उण्हं, दंसाचेलारइथिओ । चरिया निसीहिया सिज्जा, अक्कोस वह जायणा ॥२७॥ अलाभ रोग तण फासा, मलसक्कार परिसहा । पन्ना अन्नाण सम्मत्तं, इअ बावीस परिसहा ॥२८॥
अन्वय खुहा, पिवासा, सी, उण्हं, दंस अचेल, अरइ, (इ)त्थिओ, चरिया, निसीहिया, सिज्जा, अक्कोस, वह, जायणा ॥२७॥ अलाभ, रोग, तणफासा, मल, सक्कार, परिसहा, पना, अन्नाण, सम्मत्तं, इअ बावीस परिसहा ॥२८॥
संस्कृत पदानुवाद .. क्षुधा पिपासा शीतमुष्णं, दंशोऽचेलकोऽरतिस्त्रियः । चर्या नैषेधिकी शय्या, आक्रोशो वधो याचना ॥२७॥ अलाभ रोग-तृण-स्पर्शा, मल सत्कार परिषहौ । प्रज्ञा-अज्ञानं सम्यकत्वमिति द्वाविंशतिः परिषहाः ॥२८॥
शब्दार्थ खुहा - क्षुधा
थिओ - स्त्री पिवासा - पिपासा
चरिया - चर्या सी - शीत
निसीहिया - निषद्या उण्हं - उष्ण
सिज्जा - शय्या दंस - दंश
अक्कोस - आक्रोश अचेल - अचेलक
वह - वध अ - अरति
जायणा - याचना
श्री नवतत्त्व प्रकरण