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मिच्छादसणवत्ती, अपच्चक्खाणी, दिहि, पुट्ठि, पाडुच्चिय, सामंतोवणीअ य नेसत्थि, य साहत्थी ॥२३॥ आणवणी, विआरणिआ, अणभोगा, अणवकंखपच्चइया, अन्ना पओगसमुदाण, पिज्ज, दोस, इरियावहिया ॥२४॥
संस्कृत पदानुवाद कायिक्यधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी पारितापनिकी क्रिया । प्राणातिपातिक्यारम्भिकी, पारिग्रहिकी मायाप्रत्ययिकी च ॥२२॥ मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी, अप्रत्याख्यानिकी च दृष्टिकी पृष्टिकी च । प्रातित्यकी सामन्तोपनिपातिकी, नैशस्त्रिकी स्वहस्तिकी ॥२३॥ आज्ञापनिकी वैदारणिकी, अनाभोगिठ्यनवकाङ्क्षप्रत्ययिकी। अन्याप्रायोगिकी सामुदानिकी, प्रेमिक्की द्वेषिकीर्यापथिकी ॥२४॥
शब्दार्थ काइय - कायिकी क्रिया | पाणाइवाय - प्राणातिपातिकी अहिगरणिया - अधिकरणिकी आरंभिय - आरंभिकी पाउसिया - प्राद्वेषिकी परिग्गहिआ - पारिग्रहिकी पारितावणी - पारितापनिकी । मायवत्ती - माया प्रत्ययिकी किरिया - क्रिया
अ - और .
शब्दार्थ मिच्छादसणवत्ती - मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी पाडुच्चिय - प्रातित्यकी
अपच्चक्खाणी.- अप्रत्याख्यानिकी सामंतोवणीय - सामंतोपनिपातिकी दिट्ठि - दृष्टिकी
नेसत्थि - नैशस्त्रिकी पुट्ठि - पृष्ठिकी
साहत्थी - स्वाहस्तिकी अ - और
शब्दार्थ आणवणि - आज्ञापनिकी. | अणवकंखपच्चइया-अनवकांक्षप्रत्ययिकी विआरणिया - वैदारणिकी | अन्ना - अन्य
अणभोगा - अनाभोगिकी | पओग - प्रायोगिकी ---------
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श्री नवतत्त्व प्रकरण