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वाला पुद्गल है । इस गाथा में विवक्षित लक्षण प्रत्येक पुद्गल में अवश्य विद्यमान होते है।
१. शब्द : अर्थात् ध्वनि, आवाज या नाद । यह सचित्त, अचित्त तथा मिश्र शब्द के भेद से तीन प्रकार का है। . अ. सचित्त शब्द : जीव मुख से बोले, वह सचित्त शब्द है ।
ब. अचित्त शब्द : पाषाणादि दो पदार्थों के संघर्ष से होने वाली आवाज अचित्त शब्द है।
स. मिश्र शब्द : जीव के प्रयत्न से बजने वाली बीणा, बांसुरी आदि की आवाज, मिश्र शब्द है।
शब्द की उत्पत्ति पुद्गल में से होती है और शब्द स्वयं भी पुद्गल रूप ही है। इसकी उत्पत्ति अष्टस्पर्शी पुद्गल स्कंध में से होती है जबकि शब्द स्वयं चतुःस्पर्शी है।
२. अंधकार : प्रकाश का अभाव अंधकार है जो कि पुद्गल रूप है। जैनदर्शन में अंधकार को भी पुद्गल कहा गया है जबकि नैयायिक अंधकार को पुद्गल न मानकर केवल तेज का अभाव मानते हैं।
३. उद्योत : चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारा इत्यादि पदार्थों तथा जुगनू आदि जीवों के शीतल प्रकाश को उद्योत कहते है । उद्योत स्वयं भी पुद्गल स्कन्ध रूप है, जिसमें से शीत प्रकाश प्रकट होता है ।
४. प्रभा : चन्द्रादि के प्रकाश में से तथा सूर्य के प्रकाश में से जो दूसरा किरण रहित उपप्रकाश पडता है, वह प्रभा है । यदि प्रभा न हो तो सूर्यादि की किरणों का प्रकाश जहाँ पडता हो, वहीं केवल प्रकाश रहे और उसके समीप के स्थान में ही अमावस्या का गाढ अन्धकार व्याप्त रहे । परन्तु उपप्रकाश रूप प्रभा के होने से ऐसा नहीं होता।
५. छाया : दर्पण, प्रकाश, अथवा जल में पड़ने वाला प्रतिबिम्ब छाया कहलाती है।
६. आतप : शीत वस्तु का उष्ण प्रकाश आतप कहलाता है। इस कर्म का उदय उन्हीं जीवों को होता है, जिनका शरीर स्वयं तो ठण्डा है लेकिन उष्ण
श्री नवतत्त्व प्रकरण