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अन्वय आहार-सरीर-इंदिय-पज्जत्ती-आणपाण-भास-मणे इग-विगल-असन्निसन्नीणं, चउ पंच पंच य छप्पि ॥६॥
संस्कृत पदानुवाद आहार शरीरेन्द्रिय, पर्याप्तय आन प्राण भाषामनांसि । चतस्त्रः पंच-पंच षडपि, चैक विकलाऽसंज्ञि संज्ञिनाम् ॥६॥
शब्दार्थ आहार - आहार
पंच-पंच - पांच-पांच सरीर - शरीर
छप्पि - छह इंदिय - इंद्रिय
य - और पज्जत्ती - पर्याप्ति इग - एकेन्द्रिय जीवों को आणपाण - श्वासोच्छास विगल - विकलेन्द्रिय जीवों को भास - भाषा
असन्नि - असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों को मणे - मन
सन्नीणं - संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों को चउ - चार -
"भावार्थ आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा तथा मन, ये छह पर्याप्तियाँ होती है । एकेन्द्रिय, विकलेंन्द्रिय, असंज्ञी तथा संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों को क्रमशः चार, पांच, पांच, छह, पर्याप्तियाँ होती है ॥६॥
विशेष विवेचन पर्याप्ति : अर्थात् शक्ति या सामर्थ्य विशेष जो पुद्गल द्रव्य के उपचय (समूह) से पैदा होता है । संसारी जीवों को शरीर के रूप में जीने की जीवन शक्ति को पर्याप्ति कहते है । कोई भी शरीर धारण करने के लिये आत्मा शक्तिमान् है पर इस शक्ति का प्रगटीकरण बिना पुद्गल-परमाणुओं की सहायता के असंभव है। पुद्गल परमाणुओं के समूह के निमित्त से आत्मा में प्रकट हुई तथा शरीरधारी अवस्था में जीवित रहने के लिये उपयोगी पुद्गलों को ग्रहण
- - श्री नवतत्त्व प्रकरण
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