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उत्तर : प्रकृति तथा प्रदेश बन्ध का हेतु केवल योग है । स्थितिबंध तथा रसबंध
का हेतु कषाय है। मिथ्यात्व तथा अविरति, कषाय के अंतर्गत ही आते
१०२४) जीव कितने परमाणुओं के स्कंध ग्रहण करता है ? उत्तर : संख्यात-असंख्यात अथवा अनंत परमाणुओं से बने हुए स्कंध को नहीं
बल्कि अनंतानन्त परमाणुओं से बने हुए स्कंध को जीव ग्रहण करता
१०२५) इस लोक में जीव के ग्रहण योग्य कितनी वर्गणाएँ हैं ? उत्तर : आठ - (१) औदारिक, (२) वैक्रिय, (३) आहारक, (४) तैजस, (५)
श्वासोच्छ्वास, (६) भाषा, (७) मन, (८) कार्मण । १०२६) वर्गणा किसे कहते हैं ? उत्तर : एक समान संख्यावाले परमाणुओं के बने हुए अनेक स्कंध वर्गणा
कहलाते हैं। १०२७) जीव एक समय में कितनी वर्गणा ग्रहण करता है ? उत्तर : अनन्त वर्गणाओं के बने हुए अनन्त स्कंधों को जीव एक समय में
ग्रहण करता है। १०२८) औदारिक वर्गणा किसे कहते हैं ? उत्तर : औदारिक शरीर रुप में परिणमित होनेवाले पुद्गल समूह को औदारिक
वर्गणा करते हैं। १०२९) वैक्रिय वर्गणा किसे कहते हैं ? उत्तर : वैकिय शरीर रुप बननेवाला पुद्गल समूह वैक्रिय वर्गणा है । १०३०) आहारक वर्गणा किसे कहते हैं ? उत्तर : जो पुद्गल आहारक शरीर रुप में परिणमे, उसे आहारक वर्गणा कहते
१०३१) तैजस वर्गणा किसे कहते हैं ? उत्तर : औदारिक तथा वैक्रिय शरीर को कांति देनेवाला और आहार पचानेवाला
पुद्गल समूह तैजस वर्गणा कहलाती है। - - - - - - - - - - - - - - - - - श्री नवतत्त्व प्रकरण
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