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________________ ९६७) ध्यान के कितने भेद हैं ? उत्तर : दो - (१) शुभ ध्यान, (२) अशुभ ध्यान ९६८) शुभ ध्यान किसे कहते हैं ? उत्तर : जो ध्यान आत्मशुद्धि करने में सहायक बने, वह शुभ ध्यान है। इसके २ भेद हैं - (१) धर्मध्यान, (२) शुक्लध्यान । ये दोनों आभ्यंतर तप होने से इनका समावेश निर्जरा तत्त्व में किया गया है । ९६९) अशुभ ध्यान किसे कहते हैं ? उत्तर : जो रौद्र परिणाम वाला हो, संसार वृद्धिकारक हो, वह अशुभ ध्यान है। इसके भी २ भेद हैं - (१) आर्तध्यान, (२) रौद्रध्यान । ये दोनों निर्जरा तत्त्व में सम्मिलित नहीं है। ९७०) आर्तध्यान किसे कहते हैं ? उत्तर : आर्त्त-दुःख के निमित्त से या भावी दुःख की आशंका से होने वाला ध्यान आर्तध्यान है। ९७१) आर्तध्यान के कितने लिंग (चिह्न) हैं ? । उत्तर : चार - (१) आक्रन्दन - उंचे स्वर से रोना, चिल्लाना, (२) शोचन - शोकग्रस्त होना, (३) परिवेदन - रोने के साथ मस्तक, छाती, सिर आदि पीटना तथा अनर्थकारी शब्दों का उच्चारण करना । (४) तेपन - टप टप आंसू गिराना। ९७२) आर्तध्यान के कितने भेद हैं ? उत्तर : चार - (१) इष्ट वियोग - इष्ट जन का वियोग होने पर चिन्ता शोक आदि करना । (२) अनिष्ट संयोग - प्रतिकूल वस्तु अथवा व्यक्ति का संयोग होने पर चिन्ता, शोक आदि का होना । (३) रोगचिंता – शरीर में रोग उत्पन्न होने पर जो चिंता होती है । (४) निदान (अग्रशोच) - भविष्य में सुख प्राप्ति की चिंता करते हुए नियाणा करना । ९७३) आर्तध्यान में कौन-सा गुणस्थानक संभवित है ? उत्तर : एक से छह गुणस्थानकों (अविरत - देशविरत तथा प्रमत्त संयत) में यह ध्यान पाया जाता है। प्रमत्त गुणस्थानक में निदान नामक चतुर्थ ३२८ श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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