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(२) सक्रिय मन - मन का कायिकी आदि कियारुप होना । (३) कर्कश मन - कर्कश भावयुक्त होना । (४) कटु मन - दूसरे के लिये मन को अनिष्ट बनाना । (५) निष्ठुर मन - निष्ठुर होना। (६) परुष मन - स्नेह का अभाव, कठोर होना । (७) आश्रवमय मन - अशुभ कर्माश्रवी होना। (८) छेदकारी मन - मन से हाथ आदि अंगों को छेदने का विचार करना । (९) भेदकारी मन - मन से नासिकादि को भेदने का विचार करना । (१०) परितापक मन - प्राणियों को कष्ट देने का मन होना। (११) उपद्रवकारी मन - जीवों को मारणांतिक कष्ट देने रुप उपद्रवकारी मन का होना।
(१२) प्राणीपीडक मन - प्राणियों को पीडा देने का मन होना । ९४५) प्रशस्त मन विनय के कितने भेद हैं ? - उत्तर : प्रशस्त मन विनय के १२ भेद हैं - (१) असावद्यक मन, (२) अक्रिय
मन, (३) अकर्कश मन, (४) अकटु (स्नेहिल) मन, (५) अनिष्ठुर मन, (६) अपरुष (कोमल) मन, (७) अनाश्रवी मन, (८) अछेदनकारी मन, (९) अभेदकारी मन, (१०) अपरितापक मन, (११) अनुपद्रवकारी
मन, (१२) अप्राणीपीडक मन । ९४६) अप्रशस्त तथा प्रशस्त वचन विनय के कितने भेद हैं ? उत्तर : अप्रशस्त तथा प्रशस्त मन की भाँति वचन के भी प्रशस्त व अप्रशस्त
की अपेक्षा से २४ भेद हैं। ९४७) प्रशस्त काय विनय के कितने भेद हैं ? उत्तर : सात - (१) उपयोगपूर्वक चलना, (२) उपयोगपूर्वक खडे रहना, (३)
उपयोगपूर्वक बैठना, (४) उपयोगपूर्वक सोना, (५) उपयोगपूर्वक किसी वस्तु का उल्लंघन करना, (६) उपयोगपूर्वक ही प्रलंघन करना (बार-बार उस पर से जाना), (७) इन्द्रियों को विषयादि से बचाना ।
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श्री नवतत्त्व प्रकरण