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९३१) प्रायश्चित्त तप किसे कहते हैं ? उत्तर : किये हुए अपराध की शुद्धि करना प्रायश्चित्त तप कहलाता है। ९३२) प्रायश्चित्त तप के कितने भेद हैं ? उत्तर : प्रायश्चित तप के दस भेद हैं -
(१) आलोचना - किये हुए पाप को गुरु आदि के समक्ष प्रकट करना। (२) प्रतिक्रमण - किये हुए पाप की पुनरावृत्ति नहीं करने के लिये मिच्छामि दुक्कडं देना। (३) मिश्र - किया हुआ पाप गुरु के समक्ष कहना और मिथ्या दुष्कृत भी देना। (४) विवेक - अकल्पनीय अन्न-पानी आदि का विधिपूर्वक त्याग करना । (५) कायोत्सर्ग - काया का व्यापार बन्द करना । (६) तप - किये हुए पाप के दंड रुप नीवी, आयंबिल आदि तप करना । (७) छेद - महाव्रत का घात होने पर अमुक प्रमाण में दीक्षा काल का छेद करना, घटना । (८) मूल - महा अपराध होने पर पुनः व्रतों का आरोपण करना । (९) अनवस्थाप्य - किये हुए अपराध का प्रायश्चित्त न करे, तब तक महाव्रत न देना। (१०) पारांचित - साध्वी का शील भंग करने अथवा दूसरा कोई महाउपघातक अपराध होने पर १२ वर्ष तक गच्छ से निष्काषित कर देने पर साधु वेश का त्याग करके शासन की महान प्रभावना करके पुनः महाव्रत स्वीकार करके गच्छ में सम्मिलित होना । इसे पारांचित
तप कहते हैं। ९३३) विनय तप किसे कहते हैं ? उत्तर : जिसके द्वारा आत्मा से कर्म रूपी मल को हटया जा सके, अथवा
गुणवान की भक्ति-बहुमान करना, आशातना न करना विनय तप
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- - - - - - श्री नवतत्त्व प्रकरण
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