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________________ (७) गमणे - जाते हुए आहार लेना । (८) आगमणे - आते हुए आहार लेना । ९१२) काल भिक्षाचरी के कितने भेद हैं ? उत्तर : चार - (१) तीसरे प्रहर के प्रथम भाग में आहार लाना व प्रथम भाग में ही भोगना । शेष तीन का त्याग । (२) दूसरे भाग में आहार लाना, दूसरे भाग में भोगना । शेष तीन का त्याग । (३) तीसरे भाग में आहार लाना, तीसरे भाग में भोगना । शेष तीन का त्याग । (४) चोथे भाग में आहार लाना, चोथे भाग में भोगना । शेष तीन का त्याग । ९१३) भाव भिक्षाचरी के कितने भेद हैं ? उत्तर : पन्द्रह - तीन आयु की स्त्री - (१) बाल, (२) युवा, (३) वृद्ध । तीन आयु का पुरुष - (१) बाल, (२) युवा, (३) वृद्ध । (७) अमुक वर्ण, (८) संस्थान, (९) अमुक वस्त्र, (१०) बैठा हो, (११) खडा हो, (१२) सिर खुला हो, (१३) सिर ढ़का हुआ हो, (१४) आभरण सहित हो, (१५) आभरण रहित हो । (अमुक बाल, अमुक वर्ण, आयु, आकृति तथा अमुक वर्ण के वस्त्रों में खडा / बैठा हो तो ही उसके हाथ से आहार लेना, अन्यथा नहीं) ९१४) रस त्याग किसे कहते हैं ? उत्तर : विकार वर्धक दूध, दही, घी आदि विगई तथा प्रणीत रस, गरिष्ठ आहार का त्याग करना, रसनेन्द्रिय का निग्रह करना, रस-लोलुपता का त्याग करना, रस परित्याग है।। ९१५) रस त्याग के कितने भेद हैं ? उत्तर : नौ भेद हैं - (१) विगई त्याग - घृत, तेल, दूध-दही आदि विकार . वर्धक वस्तुओं का त्याग करना । ___ (२) प्रणीत रस त्याग - जिसमें घी, दूध आदि की बूंदे टपक रही - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - श्री नवतत्त्व प्रकरण ३१७
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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