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________________ करते हैं । पुनः ६ माह बीतने पर वाचनाचार्य ६ माह तप करते हैं व जघन्य से एक व उत्कृष्ट से ७ साधु उनकी सेवा करते हैं व एक वाचनाचार्य होते हैं । इस प्रकार कुल १८ माह में यह तप पूर्ण होता है। पश्चात् वह साधु जिनकल्प अथवा स्थविरकल्प को स्वीकार करता है। भरत तथा ऐरवत क्षेत्र में ही यह चारित्र होता है। स्त्री को यह चारित्र नहीं होता । प्रथम संघयण वाले पूर्वधर लब्धिवाले को ही यह चारित्र होता है। ८४८) परिहार विशुद्धि चारित्र के कितने भेद हैं ? उत्तर : दो - (१) निर्विश्यमान, (२) निर्विष्टकायिक । ८४९) निविश्यमान परिहार विशुद्धि चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर : तप करनेवाले पारिहारिक साधु निर्विश्यमान कहलाते हैं तथा उनका चारित्र निर्विश्यमान परिहार विशुद्धि चारित्र कहलाता है। ८५०) निर्विष्टकायिक पंरिहार विशुद्धि चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर : तप करके वैयावच्च करनेवाले तथा तप करके गुरु पद पर रहा हुआ साधु निविष्टकायिक कहलाते हैं तथा उनका चारित्र निर्विष्टकायिक परिहार विशुद्धि चारित्र कहलाता है। ८५१) परिहार विशुद्धि चारित्र की तपविधि क्या है ? . उत्तर : काल जघन्य तप मध्यम तप उत्कृष्ट तप ग्रीष्मकाल १ उपवास .. २ उपवास ३ उपवास शीतकाल २ उपवास ३ उपवास ४ उपवास वर्षाकाल ३ उपवास ४ उपवास ५ उपवास ८५२) सूक्ष्म संपराय चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर : सूक्ष्म अर्थात् किट्टि रूप (चूर्णरूप) अति जघन्य संपराय - बादर लोभ कषाय के क्षयवाला जो चारित्र है, वह सूक्ष्म संपराय चारित्र कहलाता है। ८५३) सूक्ष्म संपराय चारित्र के कितने भेद हैं ? - - - - - ३०८ - - - - - - - - - - - -- तत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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