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________________ उत्तर : साधु के लिये स्नान श्रृंगार का कारण है और श्रृंगार विषय का कारण रूप है, अतः शरीर पर स्वेद-पसीने के कारण मैलादि जमने पर दुर्गंध आती हो तब भी उसे दूर करने के लिये स्नानादि की इच्छा न करना, मल परीषह है। ७९७ ) सत्कार परीषह किसे कहते हैं ? उत्तर : सामाजिक, धार्मिक, राष्ट्रीय सत्कार सम्मान प्राप्त होने पर भी मन में हर्ष तथा गर्व न करना, सत्कार परीषह है। ७९८) प्रज्ञा परीषह किसे कहते हैं? उत्तर : बहुश्रुत गीतार्थ होने पर बहुत से लोग प्रश्न पूछते हैं, तो कोई विवाद भी करते हैं । इससे खिन्न होकर ज्ञान को दुःखदायक और अज्ञान को सुखदायक नहीं मानकर समभाव से लोगों की शंका व जिज्ञासाओं को समाहित करना, प्रज्ञा परीषह है। ७९९) अज्ञान परीषह किसे कहते हैं ? उत्तर : ज्ञान प्राप्ति के लिये अथक प्रयास, तपस्या तथा ज्ञानाभ्यास करने पर भी ज्ञान की प्राप्ति न होने पर अपने आप को पुण्यहीन, निर्भाग मानकर खिन्न न होना अपितु ज्ञानावरणीय कर्म का उदय समझकर चित्त को शांत रखना, अज्ञान परीषह है। ८००) सम्यक्त्व परीषह किसे कहते हैं ? उत्तर : नाना प्रकार के प्रलोभन अथवा अनेक कष्ट व उपसर्ग आने पर भी अन्य पाषंडियों के आडम्बर पर मोहित न होकर सर्वज्ञ प्रणीत धर्मतत्त्व पर अटल श्रद्धा रखना, शास्त्रीय सूक्ष्म अर्थ समझ में न आने पर उदासीन होकर विपरीत भाव न लाना, सम्यक्त्व परीषह है । ८०१) समकाल में एक जीव को उत्कृष्ट व जघन्य से कितने परीषह संभवित उत्तर : शीत और उष्ण तथा चर्या और निषद्या, इन चार परीषहों में से समकाल में दो अविरोधी परीषह होते हैं । अतः एक जीव को उत्कृष्ट से २० ------------ श्री नवतत्त्व प्रकरण २९७
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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