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(१०) त्रस प्राणी, बीज - हरितकायादि पर न परठें ।
७६६ ) गुप्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर : 'गुप्यते रक्ष्यते त्रायते वा गुप्तिः', गोपन या रक्षण करे, वह गुप्ति है। संसार में संसरण करते प्राणी की जो रक्षा करे, वह गुप्ति है । अथवा मन, वाणी तथा शरीर को हिंसा आदि सर्व अशुभ प्रवृत्तियों से निग्रह (वश) करके रखना, सम्यक् प्रकार से उपयोग पूर्वक निवृत्ति रखना गुप्त है।
७६७) मनोगुप्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर : आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान, संरम्भ, समारंभ तथा आरंभ संबंधी संकल्प न करना, शुभाशुभ योगों को रोककर योगनिरोध अवस्था को प्राप्त करना मनोगुप्ति है।
७६८ ) मनोगुप्ति के कितने भेद हैं ?
उत्तर : तीन भेद हैं- (१) असत् कल्पना वियोगिनी - आर्त्त तथा रौद्रध्यान सम्बन्धी अशुभ कल्पनाओं का त्याग करना । (२) समताभाविनी प्राण, भूत, जीव तथा सत्त्वों पर समताभाव रखना । (३) योगनिरोध केवलज्ञान प्राप्त होने पर मनोयोग का सर्वथा निरोध हो जाता है, उससे जो अवस्था प्राप्त होती है, वह योग निरोध रूप मनोगुप्ति है । ७६९ ) वचनगुप्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर : वचन के अशुभ व्यापार अर्थात् संरभ-समारंभ तथा आरंभ संबंधी वचन का त्याग करना, विकथा नहीं करना, मौन रहना वचन गुप्ति है ।
७७०) वचनगुप्ति के कितने भेद हैं ?
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उत्तर : दो - (१) मौनावलंबिनी - पाप प्रवृत्ति से सर्वथा मौन धारण करना । (२) वाड्नियमिनी - बोलते समय मुख के आगे मुखवस्त्रिका रखना । ७७१ ) संरंभ, समारंभ तथा आरंभ से क्या आशय है ?
उत्तर : संरंभ - मन में हिंसादि का संकल्प विचार संरंभ है ।
समारंभ - हिंसादि कार्य के लिये साधन जुटाना समारंभ है । आरंभ - मन में संकल्प किये हुए कार्य को शरीर द्वारा क्रियान्वित करना
श्री नवतत्त्व प्रकरण