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________________ ६०५ ) कषाय चारित्रमोहनीय के मुख्य भेद स्पष्ट करो । उत्तर : कषाय चारित्रमोहनीय के मुख्य ४ भेद हैं - १. अनन्तानुबंधी कषाय, २. अप्रत्याख्यानीय कषाय, ३. प्रत्याख्यानीय कषाय, ४. संज्वलन कषाय । इन चारों के क्रोध - मान-माया - लोभ ये चार-चार भेद होने से कुल १६ भेद हैं । ६०६ ) अनन्तानुबंधी कषाय चतुष्क की व्याख्या करो । उत्तर : जो कषाय आत्मा को अनंतकाल तक संसार में परिभ्रमण करावे, अनुबंध करावे, उसे अनन्तानुबंधी कषाय कहते है : १. अनन्तानुबंधी क्रोध : पर्वत में पडी हुई दरार जिस प्रकार कभी नहीं मिटती, इसी प्रकार यह क्रोध परिश्रम तथा उपाय करने पर भी शान्त नहीं होता । २. अनन्तानुबन्धी मान : यह पत्थर के स्तंभ के समान है, जो कभी नहीं झुकता । इसी प्रकार अनन्तानुबंधी मानवाला आत्मा अपने जीवन में कभी नम्र नहीं बनता है । ३. अनन्तानुबन्धी माया : यह बांस की जड़ों के समान है, जो कभी सीधी या सरल नहीं होती है। इसी प्रकार इस कषाय से युक्त जीव सरल नहीं बनता है । ४. अनन्तानुबन्धी लोभ : जिस प्रकार मजीठ का रंग कभी नहीं मिटता, उसी प्रकार अनन्तानुबंधी लोभ वाली आत्मा का लालच कभी नहीं मिटता है । इस कषाय वाला आत्मा मरकर नरक अथवा तिर्यञ्चादि गति में जाता है । ६०७) अप्रत्याख्यानीय कषाय चतुष्क की व्याख्या भेद सहित करो । उत्तर : जिसका उदय चार महिने से लेकर वर्षभर के अंदर-अंदर खत्म हो जाता है, जो देशविरति चारित्र ( श्रावकत्व) का घात करता है, उसे श्री नवतत्त्व प्रकरण २६१
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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