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प्रचलादर्शनावरणीय कर्म कहते है। ५९१) स्त्यानर्द्धि निद्रा किसे कहते है ? उत्तर : जिस निद्रा में प्राणी बडे-बडे बलसाध्य कार्य सम्पन्न कर देता है तथा
जागृत दशा की अपेक्षा जिस निद्रा में अनेक गुणा अधिक बल आ जाता है, वह स्त्यानर्द्धि निद्रा है । इस निद्रा में वज्रऋषभनाराचसंघयण वाले जीव में अर्धचक्री अर्थात् वासुदेव का आधाबल आ जाता है। सामान्य व्यक्ति का बल सात-आठ गुणा हो जाता है। इस निद्रावाला
जीव मरकर नरक में जाता है। ५९२ ) अशातावेदनीय कर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव को अशाता या दुःख का वेदन होता है,
उसे अशातावेदनीय कर्म कहते है। ५९३) मोहनीय कर्म के कितने भेद हैं ? उत्तर : मोहनीय कर्म के दो भेद हैं - १. दर्शन मोहनीय, २. चारित्र मोहनीय। ५९४) दर्शन मोहनीय के कितने भेद हैं ? उत्तर : दर्शन मोहनीय के तीन भेद हैं - १. सम्यक्त्व मोहनीय, २. मिश्र
मोहनीय, ३. मिथ्यात्व मोहनीय । ५९५) चारित्र मोहनीय के कितने भेद हैं ? उत्तर : चारित्र मोहनीय के दो भेद हैं - कषाय चारित्र मोहनीय व नोकषाय
___ चारित्र मोहनीय। ५९६ ) कषाय व नोकषाय के कितने भेद हैं ? उत्तर : कषाय के सोलह व नोकषाय के ९ भेद हैं। ५९७) दर्शन मोहनीय कर्म किसे कहते है ? उत्तर : जो पदार्थ जैसा है, उसे वैसा ही समझना दर्शन अर्थात् सम्यग्दर्शन है।
आत्मा के सम्यग्दर्शन की शुद्धता का हरण करने वाले अथवा कलुषित
करने वाले कर्म को दर्शन मोहनीय कर्म कहते है। ५९८) सम्यक्त्व मोहनीय कर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिसका उदय तात्विक रुचि का निमित्त होकर भी औपशमिक या
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श्री नवतत्त्व प्रकरण
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