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________________ विषयों के प्रति अरूचि, उद्वेग करना, अरति है। ५६५) परपरिवाद किसे कहते है ? उत्तर : दूसरों की निन्दा करना, विकथा करना, उसे परपरिवाद कहते है। ५६६) मायामृषावाद किसे कहते है ? उत्तर : माया (कपट) पूर्वक झूठ बोलना। ५६७) मिथ्यात्वशल्य किसे कहते है ? उत्तर : कुदेव-कुगुरु-कुधर्म पर श्रद्धा होना । ५६८) उपरोक्त १८ पापस्थानकों से बांधा हुआ पाप कितने प्रकार से भोगा जाता है ? उत्तर : उपरोक्त १८ पापस्थानकों से बांधा हुआ पाप ८२ प्रकार से भोगा जाता है। पाप तत्त्व की बयासी प्रकृतियाँ ५६९) पाप तत्त्व की ८२ प्रकृतियाँ कौन-सी है ? उत्तर : पाप तत्व की ८२ प्रकृतियाँ वे इस प्रकार हैं - १-५. ज्ञानावरणीय कर्म की - ५ : मतिज्ञानावरणीय, श्रुतज्ञानावरणीय, अवधिज्ञानावरणीय, मनःपर्यवज्ञानावरणीय, केवलज्ञानावरणीय ६-१०. अंतराय कर्म की - ५ : दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय, वीर्यान्तराय ११-१९. दर्शनावरणीय कर्म की - ९ : चक्षुदर्शनावरणीय, अचक्षुदर्शनावरणीय, अवधिदर्शनावरणीय, केवलदर्शनावरणीय, निद्रा, निद्रा-निद्रा, प्रचला, प्रचला-प्रचला, स्त्यानद्धि २०. गोत्र कर्म की - १ : नीच गोत्र २१. वेदनीय कर्म की - १ : अशातावेदनीय २२-४७. मोहनीय कर्म की - २६ : मिथ्यात्व मोहनीय १६ कषाय : अनंतानुबंधी - क्रोध-मान-माया-लोभ अप्रत्याख्यानीय - क्रोध-मान-माया-लोभ ------------- श्री नवतत्त्व प्रकरण २५५
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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