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________________ उत्तर : देवगति में ३० अथवा ३१ पुण्य प्रकृतियाँ होती है : १. शातावेदनीय, २. उच्चगोत्र, ३. पंचेन्द्रिय जाति, ४-६. देवत्रिक, ७. वैक्रिय शरीर, ८. तैजस शरीर, ९. कार्मण शरीर, १०. वैक्रिय अंगोपांग, ११. समचतुरस्र संस्थान, १२-१५. शुभवर्णचतुष्क, १६. शुभविहायोगति, १७. पराघात, १८. उच्छ्वास, १९. अगुरुलघु, २०. निर्माण, २१. त्रस, २२. बादर, २३. पर्याप्त, २४. प्रत्येक, २५. स्थिर, २६. शुभ, २७. सुभग, २८. सुस्वर, २९. आदेय, ३०. यश और उद्योत साथ में गिनने पर ३१ प्रकृतियाँ होती हैं। ५४२ ) एकेन्द्रिय जाति में पुण्य के कितने भेद होते हैं ? उत्तर : एकेन्द्रिय जाति में पुण्य के २२ भेद होते हैं : १. शाता वेदनीय, २. तिर्यंच आयुष्य, ३. औदारिक शरीर, ४. वैक्रिय शरीर, ५. तैजस शरीर, ६. कार्मण शरीर, ७. पराघात, ८. उच्छवास, ९. आतप, १०. उद्योत, ११. अगुरुलघु, १२. निर्माण, १३. बादर, १४. पर्याप्त, १५. प्रत्येक, १६. स्थिर, १७. शुभ, १८. यश, १९-२२. शुभ वर्णचतुष्क। ५४३) बेइन्द्रिय जाति में पुण्य के कितने भेद होते है ? उत्तर : एकेन्द्रिय की भाँति द्वीन्द्रिय में आतप रहित उपरोक्त २१ भेद होते हैं। ___ तथा वैक्रिय शरीर के स्थान पर उन्हें औदारिक अंगोपांग भेद होता है। ५४४) तेइन्द्रिय जाति में पुण्य के कितने भेद होते हैं ? उत्तर : बेइन्द्रियवत् २१ भेद होते हैं । ५४५) चतुरिन्द्रिय जाति में पुण्य के कितने भेद होते हैं ? उत्तर : चतुरिन्द्रिय जाति में उपरोक्तवत् २१ भेद ही होते हैं । ५४६) पंचेन्द्रिय जाति में पुण्य के कितने भेद होते हैं ? उत्तर : पुण्य तत्व के ४१ भेद पंचेन्द्रिय जाति में होते हैं । केवल आतप नामकर्म का उदय नही होता । शेष सभी पुण्य प्रकृतियाँ पंचेन्द्रिय जाति में संभव है। ५४७) पुण्य तत्त्व को जानने का उद्देश्य क्या है ? उत्तर : पुण्य तत्त्व के भेदों को जानने के बाद विचार आता है कि सभी पुण्य - - २५२ श्री नवतत्त्व प्रकरण - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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