________________
४५५) सर्वव्यापी तथा देशव्यापी किसे कहते है ? उत्तर : लोक तथा अलोक में, सर्वत्र व्याप्त होकर रहता है, वह सर्वव्यापी
कहलाता है। जो केवल लोक में ही रहता है, वह देशव्यापी कहलाता
है।
४५६) छह द्रव्यों में से कितने अप्रवेशी तथा कितने सप्रवेशी है ? उत्तर : सभी द्रव्य यद्यपि एक दूसरे में प्रविष्ट होकर एक ही स्थान में रहे हुए
है, तथापि कोई भी द्रव्य अन्य द्रव्य रूप में परिणमित नहीं होता है।
अतः सभी द्रव्य अप्रवेशी है। ४५७) प्रवेशी किसे कहते है ? उत्तर : प्रवेशी अर्थात् अपने स्वभाव को छोड़कर अन्य द्रव्य रूप हो जाना
अर्थात् धर्मास्तिकाय का अधर्मास्तिकाय रूप होना या जीव का अजीव हो जाना प्रवेशी कहलाता है। पर ऐसा कदापि नहीं होता है, अतः सभी
द्रव्यों को अप्रवेशी कहा गया है। ४५८) अलोकाकाश में अन्य कोई भी द्रव्य नहीं है फिर उसमें अवकाश देने
की क्रिया कैसे घट सकेगी? उत्तर : अलोकाकाश में भी लोकाकाश के समान ही अवकाश देने की शक्ति
है। वहाँ कोई अवकाश लेने वाला द्रव्य नहीं है, इसीसे वह क्रिया
नहीं करता। ४५९) छह द्रव्यों की कितनी संख्या है ? उत्तर : केवली भगवान् ने अपने ज्ञान से देख कर पूर्वोक्त छह द्रव्यों की संख्या
इस प्रकार बतलाई है - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय एक-एक है । जीव द्रव्य अनंत हैं, उनके भेद इस प्रकार हैं - संज्ञी मनुष्य संख्यात और असंज्ञी मनुष्य असंख्यात । नरक के जीव असंख्यात, देव असंख्यात, तिर्यंच पंचेन्द्रिय असंख्यात, बेइन्द्रिय जीव असंख्यात, तेउकाय, वायुकाय और प्रत्येक वनस्पतिकाय प्रत्येक असंख्यात-असंख्यात हैं । इनसे सिद्ध जीव अनंतगुणा हैं । सिद्धों से भी निगोद के जीव अनंतगुणा हैं।
श्री नवतत्त्व प्रकरण
२३७