SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६०) मनः पर्याप्ति का काल कितना है ? । उत्तर : औदारिक शरीर वाले जीवों को एक अंतर्मुहूर्त का तथा वैक्रिय शरीर वाले जीवों को एक समय का काल मनोपर्याप्ति का होता है। १६१) एकेन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती हैं ? उत्तर : एकेन्द्रिय जीवों के ४ पर्याप्तियाँ होती हैं - १. आहार पर्याप्ति, २. शरीर . पर्याप्ति, ३. इन्द्रिय पर्याप्ति, ४. श्वासोच्छवास पर्याप्ति । १६२) विकलेन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती हैं ? उत्तर : विकलेन्द्रिय जीवों के ५ पर्याप्तियाँ होती हैं - १. आहार पर्याप्ति, २. शरीर पर्याप्ति, ३. इन्द्रिय पर्याप्ति, ४. श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति, ५. भाषा पर्याप्ति । १६३) विकलेन्द्रिय किसे कहते है ? । उत्तर : जो त्रसकाय की श्रेणी में आते है, तथा जिन्हें विकल अर्थात् एक से अधिक व पाँच से न्यून इन्द्रियाँ प्राप्त हुई हैं, ऐसे द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीवों को सामूहिक रूप में विकलेन्द्रिय कहते हैं । १६४) असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती हैं ? उत्तर : मनः पर्याप्ति के अतिरिक्त पांच पर्याप्तियाँ होती हैं। १६५) असंज्ञी किसे कहते है ? उत्तर : जो जीव मन रहित होते हैं अर्थात् जिनके मनःपर्याप्ति नहीं होती, वे ___जीव असंज्ञी कहलाते है। १६६) संज्ञी किसे कहते है ? उत्तर : जिनके दीर्घकालिकी संज्ञा हो अर्थात् जो मन सहित होते हैं, वे जीव संज्ञी कहलाते है। १६७) संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती हैं ? उत्तर : संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों को छहों पर्याप्तियाँ होती हैं । १६८) कौन-कौन से जीव असंज्ञी कहलाते हैं ? उत्तर : एकेन्द्रिय, (पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय), द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा सम्मूच्छिम पंचेन्द्रिय जीव असंज्ञी -------------------- श्री नवतत्त्व प्रकरण १८७
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy