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गाथा
कैसी बुद्धि में सम्यक्त्व का सद्भाव ?
गाथा सव्वाइं जिणेसर, भासियाई वयणाई नन्नहा हुंति । इअ बुद्धी जस्स मणे, सम्मत्तं निच्चलं तस्स ॥५२॥
अन्वय जिणेसर भासियाई सव्वाइं वयणाई अन्नहा न हुंति, जस्स मणे इअ बुद्धी, तस्स सम्मत्तं निच्चलं ॥५२॥ ..... ।
संस्कृत पदानुवाद । सर्वाणि जिनेश्वर भाषितानि, वचनानि नान्यथा भवन्ति । इतिबुद्धिर्यस्य मनसि, सम्यक्त्वं निश्चलं तस्य ॥१२॥
शब्वार्थ सव्वाइं - समस्त
इअ - ऐसी जिणेसर - जिनेश्वर के बुद्धी - बुद्धि भासियाई - कहे हुए जस्स - जिसके वयणाई - वचन
मणे - मन (हृदय) में न - नहीं
सम्मत्तं - सम्यक्त्व अन्नहा - अन्यथा, असत्य निच्चलं - निश्चल हुति - होते हैं।
तस्स - उसका
भावार्थ श्री जिनेश्वर देव के कहे हुए समस्त वचन अन्यथा (असत्य) नहीं होते, ऐसी बुद्धि ( श्रद्धा ) जिसके मन में हो, उसका सम्यक्त्व निश्चल है ॥५२॥
_ विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में सम्यक्त्व प्राप्त करने योग्य बुद्धि का कथन है । मिथ्यात्व से कलुषित अथवा सर्वज्ञ वचन में संदेहशील बुद्धि सम्यक्त्व का उपार्जन नहीं कर सकती क्योंकि सर्वज्ञ १८ दोषों से रहित होने के कारण उनके वचन सदा सत्य ही होते हैं । वे असत्य नहीं हो सकते क्योंकि असत्य बोलने के ८ कारणों से व्यक्ति असत्य भाषण करता है - (१) क्रोध से, (२) मान से, (३) माया से, --- १५०
श्री नवतत्त्व प्रकरण
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