SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुक्रम से संख्यातगुणा अधिक हैं । इस प्रकार का यह मोक्षतत्त्व है तथा नवतत्त्व भी संक्षेप से कहे गये हैं ॥५०॥ विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में ९ वें अल्पबहुत्व द्वार का विवेचन है । इसी के साथ नवतत्त्व की व्याख्या भी समाप्त हो जाती है। नपुंसकलिंगवाले जीव एक समय में उत्कृष्ट १० मोक्ष में जाते हैं इसलिये नपुंसकसिद्ध अल्प है । स्त्री एक समय में उत्कृष्ट से २० मोक्ष में जाती है, इसलिये दुगुनी होने से स्त्रीलिंग सिद्ध संख्यात गुण अधिक है। पुरुष एक समय में उत्कृष्ट से १०८ मोक्ष में जाते है, इसलिये स्त्रियों से भी फुषलिंग सिद्ध संख्यात गुणा अधिक है। सिद्धों के शेष भेदों का अल्पबहुत्व १) जिनसिद्ध अल्प और अर्जिनसिद्ध उनसे असंख्य गुणा । २) अतीर्थ सिद्ध अल्प और तीर्थसिद्ध उनसे असंख्य गुणा । ३) गृहस्थलिंग सिद्ध अल्प, उनसे अन्यलिंग सिद्ध (अ) संख्यातगुणा, उनसे स्वलिंग सिद्ध असंख्यात गुणा में ४) स्वयं बुद्ध सिद्ध अल्प, इनसें प्रत्येक बुद्धसिद्ध संख्यात गुणा, उनसे बुद्धबोधित सिद्ध संख्यगुणा ।। ५) अनेक सिद्ध अल्प और एकसिद्ध उनसे. (अ) संख्यातगुणा । नवतत्त्वों को जानने से सम्यक्त्व का लाभ गाथा जीवाइ नव पयत्थे, जो जाणइ तस्स होइ सम्मत्तं । भावेण सद्दहन्तो, अयाण-माणे वि सम्मत्तं ॥५१॥ अन्वय जीवाइ नव पयत्थे, जो जाणइ तस्स सम्मत्तं होइ, अयाणमाणे वि भावेण सद्दहन्तो सम्मत्तं (होइ) ॥ संस्कृतपदानुवाद जीवादि नव पदार्थान्, यो जानाति तस्य भवति सम्यक्त्वम् । भावेन श्रद्धतोऽज्ञानवतोऽपि सम्यक्त्वम् ॥५१॥ १४८ . श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy