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________________ फुसणा - स्पर्शना अहिया - अधिक है कालो - काल है इग सिद्ध एक सिद्ध की पडुच्च - अपेक्षा से साइओऽणतो - सादि - अनन्त - शब्द - १४० पडिवाय प्रतिपात - पड जाने के (पुन: संसार में आने के) अभावाओ - अभाव से सिद्धाणं सिद्धों को - - अंतरं - अंतर भावार्थ (सिद्ध के जीव को क्षेत्र की अपेक्षा) स्पर्शना अधिक है, एक सिद्ध की अपेक्षा से सादि - अनन्तकाल है, प्रतिपात (संसार में पुनः पतन) का अभाव होने से सिद्धों में अन्तर नहीं है ॥ ४८ ॥ थ - नहीं है । विशेष विवेचन.. प्रस्तुत गाथा में स्पर्शना, काल तथा अन्तर, इन तीन द्वारों की मीमांसा की गयी है ४. स्पर्शना द्वार : सिद्ध जीवों की स्पर्शना क्षेत्र की अपेक्षा अधिक है जीव जिस आकाशक्षेत्र में कर्ममुक्त होकर रहता है, उसका नाम सिद्धक्षेत्र है । उसका प्रमाण पैंतालीस लाख योजन लम्बा-चौडा है । सिद्ध जिस आकाशप्रदेश में रहते हैं, उसकी चारों दिशाओं तथा उर्ध्व-अधो इन ६ दिशाओं में घेरे हुए एक-एक आकाश प्रदेश मिलाकर स्पर्श करनेवाले आकाश प्रदेश ६ है एवं जहाँ सिद्ध का जीव स्थित है, उसकी अवगाहना का एक प्रदेश मिलाकर कुल ७ आकाश प्रदेशों की स्पर्शना कहलाती है । इस प्रकार केवल सिद्ध को ही नहीं परन्तु परमाणु आदि प्रत्येक द्रव्य को स्पर्शना अधिक होती है । ५. कालद्वार : एक सिद्ध की अपेक्षा से विचार करने पर वह जीव जब मोक्ष में गया, वह काल उस सिद्ध की आदि है । फिर मोक्ष से वह जीव कभी इस संसार में नहीं आयेगा अर्थात् पुनरागमन नहीं होने से सिद्धावस्था अनंत है । इस प्रकार एक सिद्ध की अपेक्षा से आदि अनन्तकाल जाने । एवं अनंतसिद्ध जीवों की अपेक्षा से अनादि अनंतकाल जाने । क्योंकि सबसे पहले कौन सिद्ध श्री नवतत्त्व प्रकरण , -
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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