________________
चारित्र, क्षायिक सम्यक्त्व, अनाहार, केवलदर्शन, केवलज्ञान, इन (१० मार्गणाओं में ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है) से शेष मार्गणाओं में मोक्ष नहीं है ॥४६॥
विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में केवल उन मार्गणा के भेदों का उल्लेख है, जिनसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। उपरोक्त १० मार्गणाएँ श्रेष्ठ हैं, क्योंकि मोक्षप्राप्ति में मुख्य कारणभूत है। शेष कषाय, वेद, योग तथा लेश्या, इन मार्गणाओं से मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता क्योंकि अकषायी, अवेदी, अयोगी, अलेशी जीव ही मोक्ष प्राप्ति का अधिकारी है। अर्थात् - ४ मूल तथा १२ उत्तर मार्गणाओं में मोक्ष की विचारणा घटित नहीं होती। द्रव्यप्रमाण तथा क्षेत्रद्वार का कथन
गाथा दव्वपमाणे सिद्धाणं, जीव दल्लाणि हुंतिणंताणि । .... लोगस्स असंखिज्जे, भागे इक्को य सब्वेवि ॥४७॥
अन्वय सिद्धाणं दव्वपमाणे, अणंताणि हुंति जीव दव्वाणि, लोगस्स असंखिज्जे, भागे इक्कोय सव्वेवि ॥४७॥
संस्कृतपदानुवाद द्रव्यप्रमाणे सिद्धानां, जीवद्रव्याणि भवन्त्यनन्तानि । लोकस्यासंख्ये भागे, एकश्च सर्वेऽपि ॥४७॥
शब्दार्थ दव्वपमाणे - द्रव्यप्रमाणद्वार । असंखिज्जे - असंख्यातवें सिद्धाणं - सिद्धों के भागे - भाग में जीवदव्वाणि - जीवद्रव्य इक्को - एक हुँति - होते हैं
य - और अणंताणि - अनन्त
सव्वेवि - सब भी लोगस्स - लोक के -- -- --- -- -- -- -- --- -- - --- १३८
श्री नवतत्त्व प्रकरण