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सह - तथा ।
लोगसहावो, बोही दुल्लहा, धम्मस्स साहगा अरिहा, एआओ भावणाओ, पयत्तेणं भावेअव्वा ॥३१॥
संस्कृतपदानुवाद प्रथमनित्यमशरणं, संसार एकता चान्यत्वं । अशुचित्वमाश्रवः, संवरश्च तथा निर्जरा नवमी ॥३०॥ लोकस्वभावो बोधिदुर्लभा धर्मस्य साधका अर्हन्तः । एता भावना, भावितव्याः प्रयत्नेन ॥३१॥
शब्दार्थ पढम - प्रथम
असुइत्तं - अशुचित्व अणिच्चं - अनित्य
झासव - आश्रव असरणं - अशरण
संवरो - संवर संसारो - संसार एगया - एकत्व
णिज्जरा - निर्जरा य - और
नवमी - नौवी अन्नत्तं - अन्यत्व
शब्दार्थ लोगसहावो - लोकस्वभाव
एआओ - ये बोही दुल्लहा - बोधिदुर्लभ भावणाओ - भावनाएँ धम्मस्स - धर्म के भावेअव्वा - भानी (धारनी) चाहिए । साहगा - साधक पयत्तेणं - प्रयत्नपूर्वक अरिहा - अरिहंत हैं।
भावार्थ अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचित्व, आश्रव, संवर, निर्जरा, लोकस्वभाव, बोधिदुर्लभ तथा धर्म के साधक अरिहंत दुर्लभ (धर्म स्वाख्यात) है, ये १२ भावनाएँ प्रयत्नपूर्वक भानी (धारनी) चाहिए ॥३०-३१॥
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श्री नवतत्त्व प्रकरण