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________________ अन्वय खंती, मद्दव, अज्जव, मुत्ती, तव, संजमे, सच्चं, सोअं, अकिंचणं, बभं च जइधम्मो बोधव्वे ॥२९॥ संस्कृतपदानुवाद क्षान्तिमार्दवार्जवो मुक्तिः, तपः संयमश्च बोधव्यः । सत्यं शौचमाकिंचन्यं, च ब्रह्म च यतिधर्मः ॥२९॥ शब्दार्थ । खंती - क्षमा | सच्चं - सत्य मद्दव - मार्दव, नम्रता सोअं - शौच (पवित्रता) अज्जव - आर्जव, सरलता अकिंचणं - आकिंचन्य मुत्ती - निर्लोभता बंभं - ब्रह्मचर्य तव - तपश्चर्या च -और संजमे - संयम जइधम्मो -यतिधर्म य - और बोधव्वे - जानना चाहिए। भावार्थ क्षमा, मार्दव, आर्जव, निर्लोभता, तप, संयम, सत्य, शौच, आकिंचन्य, ब्रह्मचर्य, ये दस प्रकार के यतिधर्म जानने चाहिए ॥२९॥ विशेष विवेचन यति : मोक्षमार्ग में जो यत्न करें, वह यति है। मुनि, साधु, श्रमण आदि यति के ही पर्यायवाची हैं । प्रस्तुत गाथा में संवर के ५७ भेदों में से १० भेदों का कथन है । यतिधर्म के १० भेद निम्न प्रकार से हैं - १.क्षमा : क्रोध पर विजय प्राप्त करना, क्रोध का कारण उपस्थित होने पर भी समभाव रखना क्षमा है । २. मार्दव : मान का त्याग कर नम्र बनना । जाति, कुल, रूप, ऐश्वर्य, तप, ज्ञान, लाभ और बल, इन आठों में से किसी का मद न करना, मार्दव कहलाता है। - - - - - - - - १०० श्री नवतत्त्व प्रकरण - - - - - - - - - - - - - - - -
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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