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देववंदन नाष्य अर्थसहित. १ केण्) ए प्रकारे ए नगणीश दोष ते (नस्सग्गे के) कानस्सग्गने विषे जाणवा. तेने (चइऊ के०) गंमे. ए नगणीश दोषमां केटलाएकन मूह अने अंगुली बे जूदा दोष करे , तेवारें वीश थाय, तथा एक (लंबुत्तर के) लंबुनर, बीजो (था के०) स्तन अनेत्रीजो (संजश के०) संयति ए त्रण (दोस के०) दोष ते (समणोण के) श्रमणीने (न के) न होय, केम के एनुं वस्त्रावृत शरीर होय, पण एटलुं विशेष जे सा ध्वी प्रतिक्रमणादि क्रिया करते मस्तक उघाउँ राखे एटले शोल दोष साधवीने लागे, अने ए त्रण दोषने (बहु के) वधू दोषे करी (स के)स हित करिये तेवारें लंबुत्तरादि चार दोष घाय. ते (समीणं के) श्राविकाने न होय, शेष पंदर दोष श्राविकाने लागे ए सर्व दोष टालीने कान स्सग्ग करवो एटले कानस्सग्गना दोषनुं वीशमुं हार यु. नत्तर बोल २०५५ थया ॥ ५७ ॥
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