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देववंदन नाष्य अर्थसहित. १ तीर्थना अधिपति गकुर जे श्री (वीर के) वीर नगवान् तेनी (शुश् के०) स्तुति जागवी. तथा नकिंतसेलसिहरे ए गाथा रूप ( दसमे के ) द शमा अधिकारने विषे (अके) वली (नऊयंत के) श्रीरैवतकाचल पर्वतने विषे श्रीनेमिनाथ नगवाननी (थुइ के) स्तुति जागवी. तथा "चत्तारि अठदस दोय वंदिया" ए गाथा रूप (गदिसि के) अगीयारमा अधिकारने विषे (अध्वाया के०) अष्टपादादिकने विषे श्रीनर तेश्वरें करावेली चोवीश जिन प्रतिमानी स्तुति जाएगवी. तथा वेयावञ्चगराणं ए गाथारूप (च रिमे के०) बेला बारमा अधिकारने विषे (सुदिति के) सम्यग्दृष्टि (सुर के ) देवताने (समरणा के) स्मरवारूप स्तुति जाणवी ॥५॥
आ ठेकाणें अगीयारमा अधिकारने विषे च तारि अठदस इत्यादि गाथामां घणा प्रकारे देव वांद्या डे ते मांहेला केटला एक इहां लखीयें बैयें. संन्नवादिक चारजिन दक्षिण दिशे, तथा सुपार्थादिक आठ जिन पश्चिम दिशे, तथा धर्मा