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देववंदन नाष्य अर्थसहित. ६॥ क्षा ए गायायें (बीयएन के) बीजो अधिकार बे, तेने विषे बली जे आगल थाशे एवा (दव जिणे के) व्यजिनने हुं वांउं . ए बे अधि कार नमुबणंना जाणवा. तथा (तश्य के) त्रीजा अधिकारें (इगचेइय ठवण जिणे के) एक चै त्यना स्थापनाजिनने हुं वांबुवं, एटले एक देरा सरमांहेली सर्व प्रतिमाउने वंदन करवू ए अरि हंत चेइयाणंने पाठे जाणवो. ए सूत्रांमां एकज अधिकार . तथा लोगस्त नोयगरे रूप (चन बमि के) चोथा अधिकारने विषे (नाम जिणे के) श्रीझषनादिक नाम जिनने हुं वांउंबुं॥३॥
तिहण उवण जिणे पुण, पंचमए वि हरमाण जिण उठे॥सत्तमए सुयनाणं अ मए सब सिख थुई ॥४४॥
अर्थः-(पुण के ) वली सचलोए अरिहंतचे इयारूप (पंचमए के०) पांचमा अधिकारने विषे स्वर्ग, मृत्यु अने पाताल रूप (तिहुअण के) त्रण नुबनने विषे जे शाश्वता अने अशा