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६६ देववंदन नाष्य अर्थसहित. कहे . तेमां पहेलं नमोतुणंने (सकलय के) शक्रस्तव दमक कहिये. बीजुं अरिहंत चेइयाणंने (चेइस के ) चैत्यस्तव दंमक कहिये. त्रीजुलो ग्गस्सने (नाम के०) नामस्तव दमक कहिये.चो) पुरस्करवरदीने (सुम के) श्रुतस्तव दमक कहिये. पांचमुं सिहाणंबुःक्षणंने (सिःक्ष्चय के) सिइस्तव दंमक कहियें. ए पांच दमकना नामर्नु अगीयारमुं हार कां. सर्व मली नत्तर बोल १९७५ थया ॥ हवे (श्व के०) ए पांच दमकने विषे देव वांदवाना बार अधिकार , तेभर्नु बारमुंहार कहे .
तिहां प्रथम शकस्तव मध्ये (दो के)बे अ धिकार , तथा बीजा अरिहंतचेश्याणंरूप चैत्य स्तवमध्ये (इग के) एक अधिकार , तथा त्री जा नामस्तव एटले लोगस्सने विषे (दो के०) बे अधिकार , तथा चोथा श्रुतस्तव मध्ये (दोके०) बेअधिकार ब, पाचमा सास्तव मध्ये (पंचय के) पांच अधिकार . ए (कमेण के) अनु क्रमें कहेवा. सर्व मली चैत्यवंदनने विषे (बारस अहिगारा के०) बार अधिकारो॥१॥