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देववंदन जाय अर्थसहित.
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यंत प्रागारा || प्रागंतुंग त्र्यागारा, नस्स ग्गावहि सरुव ॥ ३८ ॥
अर्थः-जे अंगीकार करवुं तेने अभ्युपगम क दीयें माटे इहां अरिहंत वांदवानी अंगीकाररूप प्रथम (अनुगमो के० ) अभ्युपगम संपदा जा एवी, तथा कानस्तग्ग कया निमित्तें कर करी यें ? ते बीजी (निमित्तं के० ) निमित्त संपदा जाणवी तथा श्रद्धादिक हेतु वधते वधते करी करियें, केम के श्रद्धादिक कारण विना निष्फल थाय माटें त्रीजी (हेन के० ) हेतु संपदा जाए वी: तथा धागार राख्या विना निरतिचारपणे कानस्लग्ग न थाय, एटला माटें ग्रागार राखवा नीली एवं इत्यादि नच्चासादिकने करवे करी चोथी ( इगवयंत के० ) एकवचनांत श्रागार संपदा जाणवी तथा " सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं" एटले सूक्ष्म नेत्रादिकफुरकबादि मात्र आदिकें करी पांचमी ( बहुवयंत आगारा के० ) बहुवचनांत आगार संपदा जाणवी. इहां आगारा पद बेहुने जोमनुं, तथा एक सहज बीजो अल्पबाहुल्य ए