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५६ देववंदन नाष्य अर्थसहित. चोखी (नव के ) नव पदनी, पांचमी (तिय के० ) त्रण पदनी, बही (उ के) उपदनी, सा तमी (चन के) चार पदनी, आठमी (उप्पय के) पदनी जाणवी. ____ हवे ए (चि के०) चैत्यस्तवनी प्रत्येक (सं पया के) संपदानां (पढमा के०) प्रथमना एटले आदिनां धुरीयांनां (पया के०) पद कहे .तिहां (अरिहं के०)अरिहंत चेश्याणं ए पहेली संपदानुं प्रथम पद (वंद के०) वंदगदत्तियाए ए बीजी संपदानुं प्रथम पद (सिवाए के)सिहाए ए त्रीजी संपदानुं प्रथम पद, (अन्न के अनबनससिएशं ए चोयी संपदानुं प्रथम पद, (सुहुम के०) सुहु महिं अंगसंचालेहिं ए पांचमी संपदानुं प्रथम पद, (एव के०) एवमाएहिं प्रागारोहिं ए हो संप दानुं प्रथम पद, ( जा के०) जाव अरिहंतारा ए सातमी संपदानुं प्रथम पद, (ताव के०) ता वकायं ए आठमी संपदानुं प्रथम पद ॥ ३७॥ - हवे ए चैत्यस्तवनी संपदाननां नाम कहे बे,
अवगमो निमित्तं, हेन ग बहु व