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॥ अथ श्रीरत्नाकरपंचविंशिका
पारन्यते॥
श्रेयःश्रियां मंगलकेलिसन, नरेन्दे वेन्नतांघ्रिपद्म। सर्वज्ञ सर्वा तिशयप्रधान, चिरं जय ज्ञानकलानिधान ॥१॥ __ अर्थः-(श्रेयःश्रियां) मोक्षरूपी लक्ष्मीना (मंगलकेलिसन) मांगलिक क्रीमाना गह स मान (नरेन्देवेन्नतांघ्रिपद्म) राजान अमे दे वेन्शेवमे नमस्कार कराया ले चरण कमल जेना एवा वली (सर्वातिशयप्रधान ) सर्व-चोत्रीश अतिशये करीने प्रधान एवा वली (ज्ञानकलानि धान) केवलज्ञाननी कलाना नंमार एवा (स र्व) हे सर्वज्ञ प्रनु ! (चिरं) चिरकाल सुधी (जय) जय पामो ॥१॥ - जगत्त्रयाधार कृपावतार, उर्वारसंसार विकारर्वदा । श्रीवीतराग त्वयि मुग्धनावा, विज्ञ पनो विझपयामि किंचित् ॥२॥