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श्री उपदेशरत्नकोष. ३०॥ एवं परमजिणेसर, सूरिवयणगुंफर म्मियं वहन । जब जणो कंठगयं, वि नलं नवएसमालमिणं ॥२६॥ ___ अर्थः-(एअं) ए प्रकारे (पजमजिरोसर मूरिवयणगुंफरम्मिश्र) पद्म जिनेश्वर मूरिना वचननी रचनावमे करीने रमणिक एवी (वि नलं) विस्तीर्ण (इणं) आ (नवएसमालं) नपदेश मालाने (नवजणो)नव्य जन (कंठ गयं) कंठगत (वह) वहन करो अर्थात कंठे धारण करो. ॥ २६ ॥ इति ॥
॥ इति उपदेशरत्नकोशः समाप्तः॥
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