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________________ ३०० पचरकाण नाष्य अर्थसहित. ___ अर्थः-(कया वि) कदापि (अप्पा) श्रा स्मानी (न पसंसिकार) प्रशंसा न करीये. (5 ऊयो वि) जननी पण (न निंदिऊ) निंदा न करीये. (बहु) घणु (बहुसो) घणी वार (न हसिइ) न इसीये. (तेण) तेथी करी ने (गुरुअत्तणं ) मोटाईपणुं (लप्रई) पामीये. ए . रिठणो न वीस सिऊद कया विवं चिऊए न वीसबो ॥न कयग्घेहिं हवि ऊ एसो नायस्स नीसंदो ॥१०॥ __ अर्थः-(रिनणो) शत्रुनो (न वीससिज्ज३) विश्वास न करीये. (कया वि) कदापि (वी सबो) विश्वासुने (न वंचिऊए ) बेतरीये न हि (कयग्घेहिं ) कृतघ्न एटले कर्या कामना ह नारा (न हविजा) न थईये. (एसो) आ (नायस्स) न्यायनो (नीसंदो) मार्ग ने. १० __ रचिऊ सुगुणे सु बझइ रान न नेह व सु॥ किऊ पत्त परिका दरकाण श्मो अ कसवहो ॥११॥
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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