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पञ्चकाण नाष्य अर्थसहित... श्ए कार करीये. (परस्स) परनो (नवयारो) नप कार (न पम्हसिज) न विसारीये. (विहलं) दुःखीने (अवलंबिऊर ) अवलंबन आपोये. (ए स) आ (नवएसो) उपदेश (विनसाणं) वि छानोनो ने ॥७॥
को वि न अप्नचिऊइ किऊइ कस्स वि न पत्रणानंगो। दीणं न य जंपिऊ जीविऊ जाव जीअलोए ॥७॥ __अर्थः-(को वि) कोईनी (न अप्रबिऊर) अन्यर्थना-प्रार्थना करीये नहीं. (कस्स वि) कोईनी (पत्रणानंगो) प्रार्थनानो नंग (न कि जार) न करीये. (य) वली (दी) दीन व चन (न जंपिऊइ) न बोलीये. (जाव) ज्यां सुधी (जीअलोए) जीवलोकने विषे (जीवि ऊइ) जीवीये त्यां सुधी ॥७॥ - अप्पा न पसंसिकाइ निंदिऊऽऊणो वि न कया वि॥ बहु बहुसो न हासिऊइ लप गुरुअत्तणं तेण ॥॥