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पञ्चरूखाण नाष्य अर्थसहित. २३ (तिरिय के) तीर्ण एटले पञ्चख्खाण तीरथु, पांचमुं (किहिय के) कीर्तित एटले पच्च ख्खाण कीत्यु, हुं (आराहिय के०) आराधि त एटले पच्चख्खाग आराध्यु ए (उसुई के०) उ प्रकारे शुकरी शह एवं (पच्चख्खाणं के) पच्चरुखाण, फलदायक होय. हवे ए विशु हिना अर्थ कहे .
तिहां प्रथम सम्यक् प्रकारे (विहिणोचिय कालि के) विधिये करी नचित काले एटले उ चितवेलाये (जं पत्तं के०) जे पञ्चख्खाण प्राप्त थयु एटले सूर्योदयथी पहेलां पच्चरुखाण नचि तकाले जे पाम्युं, एटले जे पञ्चरुखाण कीg, ते यावन्मात्र जेटला काल लगण ग्रहण करयुं, ता वन्मात्र तेटला काल लगे पहोंचाम, तेने (फा सिय के ) फरश्युं कहीये ॥ ४ ॥
पालिय पुण पुण सरियं, सोहिय गु रुदत्त सेस लोयण ॥ तिरिय सम हिय कालो, किहिय लोयण समयसरणे॥४॥