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पञ्चकाण नाष्य अर्थसहित. १ प्रमाण रूप ते ( सयं च के) पोतानी मेळे जे वीरीते बोल्यु होय-यथोक्तरूपे जे नंगादिके ली, होय, ते नंगादिके (मणवयणतणूहि के) मन, वचन अने कायाये करी (पालगियं के) पा लवा योग्य ते (जागजाग पासि के) जाण अजाण्या पासे करे (इत्ति के) एम (नंगचनगे के)नंगचतुष्के एटले चार नांगाने विषे करे; तेमां (तिसुअणुमा के) पहेला त्रण नांगाने विषे अनुझा एटले आज्ञा ले एटले ए पञ्चरकाणने क रवा कराववा रूप चननंगी थाय ते कहे .एक पञ्चकाणनो करनार शिष्य पण जाण होय, अने बीजो पञ्चरकाण करावनार गुरु पण जाण होय, ए प्रथम नंग शुइ जाणवो. बीजो पञ्चरका एग करावनार गुरु जाग होय अने पञ्चरकाण क रनार शिष्य अजाण होय, ए बीजो नांगो पण शुभ जाणवो.त्रीजो पञ्चरकाण करनार शिष्य जाण होय अने पञ्चकाणनो करावनार गुरु श्र जाण होय. ए बीजो नांगो पण शह जाणवो. चोथो पञ्चरकाण करनार शिष्य अने पञ्चरकाण क