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पञ्चरकाण नाष्य अर्थसहित. ७५ मण वयण काय मणवय, मणतणु वय तणु ।तजोगि सग सत्त॥कर कारणुम तिजुय, तिकालि सीयाल नंगसयं ॥४॥ ___ अर्थः-एक प्राणातिपातादिकने (मण के) मने करी न करूं, बीजो (वयण के) वचने करी न करूं, त्रीजो (काय के) कायाये करी न करूं, चोथो (मणवय के० ) मन अने वचने करी न करूं. पांचमो (मणतणु के) मन अने कायाये करी न करूं, हो (वयतणु के०) वच न अने कायाये करी न करूं, सातमो (तिजो गि के) मन, वचन अने काया, ए त्रणे योगे करी न करूं, ए एक संयोगो (सग के० ) सा तनांगा थया.
ते सात नांगा ( कर के) करवा. आश्रयी जाणवा. तेमज ( सत्त के०) सात भांगा (कार के) कराववा आश्रयी जाणवा, अने सात नांगा (अणुम के ) अनुमति प्रापवाना एटले अनु मोदन देवाना पण जागवा.