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देववंदन नाष्य अर्थसहित. ७ हवे त्रीजी मुक्ताशुक्तिमुज्ञ कहे .
मुत्ता सुत्ती मुद्दा, जब समा दोवि ग निआ हबा ॥ ते पुण निलाडदेसे, लग्गा अन्ने अलग्ग त्ति ॥ १७ ॥
अर्थः-(जल के) जिहां (दोवि के०) बेहुए पण (हला के०) हाथ ते (समा के०) सरखा बरावर (गप्रिया के) गर्जितपणे राखी (ते के (ते बे हस्त ) पुण के०) वली निलामदेसे के ललाटना देश एटले ललाटनां मध्य नागने विषे (लग्गा के०) लगामया होय, वली (अन्ने के०)अन्य एटले बीजा केटलाएक आचार्यो कहे
के (अलग्गति के०) अलगामया होय एटले ल लाटदेशथी उर राख्या होय. इति एटले ए प्रकारे (मुत्तासुत्तीमुद्दा के) मुक्ताशुक्तिनामे मुज्ञ क हीये. एमां अंगुलिना बिइ विना जेम मोतीना जीपनो जोमो मलेलो होय, तेवा आकारें हाथ राखवा, ए मुशनु ए लक्षण ले ॥ १७ ॥